दो मुक्तक
१)
ए गुमान शायद तूने वक़्त का तूफ़ान नहीं देखा
मलबा बनते गगनचुम्बी मकान नहीं देखा
किस कदर धुआं बन उड़ जाती है जिंदगानिया
लगता है तूने कभी श्मशान नहीं देखा
२)
गुदगुदाती रचना पर लगते पूर्णविराम देखा
देखते ही देखते जब वो मस्ताना सूरज ढलने लगा
इतराती जिन्दगी का अपनी आखिरी अंजाम देखा